Sachin vs Lara: 90 के दशक का सबसे महान बल्लेबाज कौन था?

Riyajuddin Ansari
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साल 1999 का भारत की टीम जहां पाकिस्तान के खिलाफ चेन्नई में टेस्ट मैच खेल रही होती है तो इस साल वेस्टइंडीज का सामना ऑस्ट्रेलिया से हो रहा होता है| हार के मुहाने पर खड़ी भारत की उम्मीद 26 साल के बल्लेबाज पर थी तो वही लगभग मैच को गंवा चुकी वेस्टइंडीज भी 30 साल के एक अनुभवी बैट्समैन के सहारे बैठी होती है|


और यहीं पर एक क्लियर ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर बनकर उभरती है, जब वह 26 साल का राइट हैंडेड शतक बनाकर भी भारत को नहीं जीता पाता लेकिन वेस्टइंडीज का वो लेफ्टी वेस्टर्न के क्रिकेट इतिहास की दूसरी सबसे महान पारी खेल कर वेस्टइंडीज को चमत्कारिक मैच जीता देता है|


और इन्ही पारियों की बात हम इस आर्टिकल करेंगे लेकिन इन पारियों ने फिर से उस डिबेट को दोबारा शुरू कर दिया जो पिछले साल यानी 1998 के सारजा स्टॉर्म के बाद खत्म हो गई थी, डिबेट यह थी दोनों में से कौन बेहतर बल्लेबाज़ है वो 26 साल का लड़का था Sachin सचिन तेंदुलकर और 30 साल के लेफ्ट हैंडेड बल्लेबाज का नाम था ब्रेन चार्ल्स लारा Lara.

इन दोनों में से बेहतर कौन?

14 साल बाद जब Lara से यही सवाल पूछा गया था तो उन्होंने सचिन का नाम लिया लेकिन यह सवाल Sachin के आखिरी टेस्ट से पहले पूछा गया था तो ऐसे में Lara लारा का यह जवाब Sachin सचिन के लिए उनके रिटायरमेंट से पहले एक प्रशंसा के तौर पर लिया गया था|


लेकिन आज के इस आर्टिकल में हम 1990 के दौरान दोनों बल्लेबाजों के बैटिंग के तरीके तकनीक और रिकॉर्ड निरंतरता टीम की सफलता में इंपैक्ट प्रेशर हैंडल करने की क्षमता कप्तानी इंजरी से वापसी और लिगसी को खोज निकालकर आज इस डिबेट का अंत कर देंगे|


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1990 से लेकर 1999 के दौरान कौन बेहतर बल्लेबाज था Sachin या फिर Lara तो चलिए आगे बढ़ते है,  जब 1989 में Sachin पाकिस्तान के खिलाफ मैदान में उतरे तो शायद किसी ने नहीं सोचा था कि दुबला पतला लड़का आगे चलकर के क्रिकेट का सबसे भरोसेमंद रन मशीन बन जाएगा| लेकिन कहानी यहा खत्म नहीं होती|


1992 तक की पूरी क्रिकेट दुनिया उन्हें वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी बोलने लगी थी 18-19 साल की उम्र में ही उन्होंने बिग लीग में एंट्री मार ली थी और फिर कभी पीछे मुड़कर के नहीं देखा,अब चलिए जरा इन आंकड़ो पर नज़र डालते हैं जो साफ़ बताते है कि 1990 में Sachin सचिन ने क्या तांडव मचाया था| 1990 से लेकर के 1999 तक सचिन ने वनडे फॉर्मेट में 43.07 की औसत के साथ 8571 रन बनाए|

दोनों सिखाया बैटिंग का मतलब 

और 24 शतक भी मारे,तो वही टेस्ट में उन्होंने साढे 5000 से ज्यादा रन बनाएं और उस दशक के छठे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज थे अगर बात कंसिस्टेंसी की करें तो हर देश के खिलाफ उनकी 40 प्लस की औसत बनती थी यानी कोई भी बोलिंग अटैक बक्सा नहीं करते थे, लेकिन असली धमाका यह नहीं था की इन्होंने रन बनाए असली चीज थी कि उन्होंने बैटिंग की परिभाषा बदल दी|


संजय मांजरेकर जो उस दौर में उनके साथी थे उन्होंने एक बार कहा था Sachin वह पहले भारतीय बल्लेबाज थे जो अच्छी गेंदों पर भी रन बनाते थे मतलब इससे पहले इंडियन बैटिंग का मतलब था डिफेंसिव रहो पेसेन्श रखो और खराब गीत का इंतजार करो लेकिन Sachin सचिन ने यह सब तोड़ दिया उन्होंने अच्छे बॉलर्स की अच्छे गेंदों को भी सीमा रेखा के पार भेजा|


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और यही चीज इन्हें खास नहीं खतरनाक बनाती थी अब बात करते हैं ब्रेन लारा की उनका जिक्र आते ही बैटिंग की जादू की तस्वीर आंखों में घूम जाती थी|यह वो खिलाड़ी थे जिन्होंने क्रिकेट बैट से नामुम्किन को मुमकिन बना दिया,वह हाई बैक लिफ्ट से लगाए गए कट और कवर ड्राइव बचपन कि याद ताजा कर देते हैं|


दिसंबर 1990 पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने डेब्यू किया स्कोर किया 44 भले ही ये आंकड़े छोटे लगे लेकिन जो आंखों ने देखा वह जादू की झलक थी पर असली तूफान तो उसके बाद आया और जो आया वो था क्रिकेट का सबसे स्टाइलिश दौर जरा इनके आंकड़ों पर ध्यान दें, टेस्ट एवरेज 52.9 और 34 शतक वनडे परफॉर्मेंस 10,405 रन औसत 40,48|

इन दोनों के बीच का अंतर 

1990 में ब्रेन लारा ने टेस्ट मैच में 375 और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 501 बनाकर अपनी क्लासिकल बल्लेबाजी का सबूत पेश किया मतलब यह बंदे अलग ही मिट्टी से बने थे जब लारा खेलते थे तो सिर्फ बैटिंग नहीं होती थी वह एक आर्ट का प्रदर्शन होता था उनका हाई बैक लिफ्ट उनका डाईनामाईट कट शॉट वो सब  लीजेंड की कहानियो में दर्ज हो चुका है|


अब जहा सचिन की ताकत थी उनकी हर दिन की कंसिस्टेंसी तो वही लारा का जादू था उनकी पीक ब्रिलियंस में,जब लारा अपनी टॉप फॉर्म में होते थे तो सीधे माउंट एवरेस्ट लेवल का पिक होता था बिल्कुल अनरीचेबल|


अब चलिए देखते है दोनों के ओवर लैपिंग कैरियर के आकड़े यानी कि वो दौए जब दोनों ही एक्टिव थे 1992 से 2006 तक, टेस्ट क्रिकेट लारा 130 मैच 11194 रन औसत 51.50, सचिन 130 मैच 9924 रन औसत 52.00 वनडे क्रिकेट 1991 से 2007 Sachin 359 मैच 15723 रन और लारा 298 मैच 10394 रन अब सिर्फ नंबर्स देख करके पूरी कहानी क्लियर नहीं होती|


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क्योंकि क्रिकेट में आकडे बहुत कुछ बताते हैं लेकिन पूरी सच्चाई नहीं, अब चलते हैं उस जगह जहां दिलचस्पी असल में शुरू होती है यानी कंसिस्टेंसी वर्सेस पीक परफॉर्मेंस सचिन मतलब कंसिस्टेंसी का दूसरा नाम हर दिन मैदान पर ऐसे उतरते थे जैसे की पूरी जिंदगी बैटिंग के हिसाब से सेट हो उनसे गलती हो जाए तो फैन को शौक लग जाता था|


दूसरी तरफ लारा वो मोमेंट्स के बादशाह थे उनके पास में जादुई ताकत थी अगर चाहे तो उस दिन क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी इनिंग्स खेल जाए और उन्होंने ऐसा किया भी, कई बार मतलब Sachin हर रोज चमकते थे लेकिन लारा जब चमके तो सचिन उनके सामने फीके नजर आए|

दोनों के गज़ब रिकॉर्ड 

अब यहाँ से बात थोड़ी सी कंट्रोवर्शियल होने वाली है क्योकि यह पॉइंट खेल की पूरी तस्वीर ही पलट देता है अब देखिए कई लोग कहते हैं कि सचिन तेंदुलकर का कैरियर थोड़ा इन्फ्लेटेड यानी बड़ा करके दिखाया हुआ है खासकर के जब आप उनके मिनोज़ टीम के खिलाफ परफॉर्मेंस देखते हैं मतलब मिनो मतलब वो टीम जो उस टाइम पर उतनी मजबूत नहीं मानी जाती थी|


जैसे जिंबॉब्वे और बांग्लादेश Sachin ने सिर्फ 23 मैचो में इन दोनों टीम के खिलाफ 8 सेंचुरी ठोकी थी अब अगर हम लारा की बात करें तो, उन्होंने इन्हीं टीम के खिलाफ सिर्फ 6 पारियों में दो सेंचुरी मारी यानी उन्होंने अपने रिकार्ड को स्टेट पैड नहीं किया सीधे तौर पर कहें तो उनका स्कोर बोर्ड ज्यादा ईमानदार लगता है|


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अब जरा नजर डालते हैं रन और इनिंग्स पर यानी RPI आरपीआई पर यह एक ऐसा फार्मूला है जो दिखता है कि किसी बल्लेबाज ने एवरेज कितने रन बनाए हैं| हर बार क्रीज पर आने पर लारा का RPI है 52.19 यानि उनके करियर एवरेस्ट से सिर्फ 0.69 का है, जबकि सचिन का RPI है 50.76 यानी जो उनके करियर एवरेज से 3.08 पॉइंट नीचे है यानि साफ साफ दीखता है की लारा की इनिंग्स ज्यादा गहराई वाली थी|


1990 का दशक सिर्फ ग्रेट बल्लेबाजों का नही था उस टाइम की बोल्लिंग अटैक इतनी खतरनाक थी कि अच्छे-अच्छे बैट्समैन की हालत पतली हो जाती थी वसीम अकरम, वकार यूनिस, सकलैन मुश्ताक, मेग्रा,शेन वोर्न,चमिंडा वाश,मुरली धारण,एम्ब्रोस,बोंड,डोनाल्ड,क्लूजनर,ब्रेटली जैसे बॉलर्स का सामना हर दूसरी सीरीज में होता था|


और उस दौर में बोलिंग अटैक सिर्फ आर्ट नहीं थी वह एक हथियार थी और सच कहें तो ये गेंदबाज़ सिर्फ विकेट नहीं लेते थे वह कैरियर तक खत्म कर देते थे| जरा सोचिए इतने तगड़े बोलर और सामने एक बंदा जो सब कुछ संभाल रहा था वो थे सचिन तेंदुलकर और ये कोई फैन बॉय टाईप लाइन नही है आंकड़े खुद बोलते है|

दोनों के रन और एवरेज 

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 3630 रन एवरेज 55.00 और 11 सेंचुरी साउथ अफ्रीका के खिलाफ 1741 रन एवरेज 42.46 वेस्टइंडीज के खिलाफ 1630 एवरेज 54.33 मतलब सीधा सपाट हर बड़ी टीम के सामने उन्होंने क्लास दिखाया उन्होंने सिर्फ रन नहीं बनाए उन्होंने हर कंडीशन में हर देश हर स्ट्रेटजी को समझा और फिर उसी के हिसाब से खुद को ढाला|


ईनकी बैटिंग स्टाइल एक ब्लूप्रिंट बन गई कैसे खेलना है इन वर्ल्ड क्लास बोलिंग अटैक्स को तो यही बात की जाए ब्रेन लारा की तो लारा का ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलना किसी लव स्टोरी से कम नहीं था| उन्होंने जब भी कंगारू का सामना किया तो मैदान पर आग लग गई 31 टेस्ट मैचो में इन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2856 रन ठोक दिए और वो भी 51 की औशत से इसमें 9 शानदार सेंचुरी भी शामिल थी|


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अब सिडनी 1993 की बात कर लीजिए जब उन्होंने 277 रन की धुआंधार पारी खेली थी अफर ब्रिजटाउन 1999 जहा इन्होने 153 नोट आउट कि वो पारी खेली थी, लेकिन कहानी में ट्विस्ट यही आता है|लारा की  एक कमजोरी भी थी टीम इंडिया अब यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है क्योंकि लारा को उनकी स्पिन बॉलिंग के खिलाफ भारत के लिए जाना जाता है|


लेकिन इंडिया के खिलाफ उनका रिकॉर्ड उम्मीद से काफी नीचे रहा इंडिया के खिलाफ उनका बैटिंग एवरेज 40 से भी नीचे रहा एक तरफ से देखा जाए तो ये उनके शानदार करियर की एकमात्र कमजोरी थी| अगर 1990 के जमाने में इंडियन क्रिकेट में Sachin तेंदुलकर का असर समझना है तो एक बात समझ ले पूरी टीम उन पर ही टिकी हुई थी उनके टीम में संजय मांजरेकर ने एक बार कहा था|

इन दोनों ने अकेले अपने कंधे पर उठाया पूरी टीम का बोझ 

अफसोस की बात है की 96-97 तक टीम पूरी तरह से तेंदुलकर पर निर्भर हो गई थी यह वही वक्त था जब भारत में 1996 का सेमीफाइनल खेला था| 1993 से 2001 के बीच Sachin ने टीमों के टोटल रनों में से 19.76% रन अकेले बनाएं| और अगर बात विदेशी जमीन की करें ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड इंग्लैंड, वेस्टइंडीज तो वह उनका योगदान था 21.31%|


यह सिर्फ बल्लेबाजी नहीं थी यह तो पूरे देश की उम्मीदों का बोझ था जो उन्होंने अकेले अपने कंधों पर उठाया और यही वजह थी कि जब Sachin फ्लॉप होते तो टीम इंडिया भी ज्यादातर हार जाती और Sachin को आजकल के फैन्स इसी वजह से सेल्फिश कहने लगे थे|


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अब लारा की कहानी थोड़ी अलग थी लेकिन उतनी ही दिलचस्प थी जब ब्रेन लारा ने वेस्टइंडीज टीम में एंट्री तब तक टीम अपने एटीज के बार से बाहर निकल गई थी| धीरे-धीरे टीम का पतन शुरू हो चुका था ऐसे में जब उन्होंने कप्तानी संभाली तो सबको उम्मीद मिली थी की वो टीम को फिर से ऊंचाई पर ले जाएंगे| लेकिन टीम का घटता ग्राफ लारा भी रोक नहीं पाए|


लारा की इंडीविजुअल परफोर्मेंस जबरजस्त रही खासकर कप्तान बनने के बाद बतौर कप्तान उनका बैटिंग एवरेज 57.83 था जो की उनके करियर एवरेज 52.88 से भी ऊपर है| मतलब कप्तानी का प्रेशर उन पर उल्टा पॉजिटिव असर डालता था अब अगर कंपेयर करें तो Sachin एक ऐसी टीम को ऊपर खींच रहे थे जो ग्रो कर रही थी|

लारा का नेचुरल टेलेंट 

और लारा एक ऐसी टीम को बचाने की कोशिश कर रहे थे जो लगातार गिर रही थी, दोनों की कहानी अलग थी लेकिन दोनों ही लार्ज देन लाइफ कैरेक्टर थे| सचिन की टेक्निक तो जैसे क्रिकेट की किताब से सीधी निकली परफेक्ट फुटवर्क लाजवाब टाइमिंग गजब का बैलेंस और हैंड आई का ऐसा कोडीनेशन जो देखने वालो को हैरान करते|


Sachin एक ऐसे कंप्लीट बल्लेबाज थे जो किसी भी सिचुएशन में अपने गेम को एडजस्ट कर लेते थे लेकिन सचिन को खास सिर्फ उनकी तकनीक नहीं बनती थी उनकी मेंटल अपरोच थी| असली कमाल की बात उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बैटिंग के इर्दगिर्द घुमा दी थी हर दिन हर पल सिर्फ एक ही मकसद खुद को प्रोफेशनली तैयार रखना और पर्फोम करना बाकियों से अलग बनाता था|


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यही डेडिकेशन था जो उनको औरो से अलग बनता था, यही बात करे ब्रेन लारा की तो उनका स्टाइल पूरा का पूरा नेचुरल टेलेंट से भरा हुआ था उनका हाई बैक लिफ्ट और ऑफ साइड पर चौंकाने वाले स्ट्रोक्स उनकी पहचान बन गए थे जब लारा फ्लॉप होते थे तो वह सिर्फ क्रिकेट नहीं खेलते थे वह जैसे कोई आर्ट क्रिएट कर रहे होते थे|


Sachin और Lara के बीच का फर्क दरअसल फिलासफी का था Sachin पर्फेक्टनिश थे जो कभी छुट्टी नहीं लेते थे और लारा एक ऐसे नेचुरल जीनियस थे जब सही मोड में होते थे तो ऐसी ऊंचाइयों को छू लेते थे जहा सचिन भी शायद नही पहुच पाते|जब हर एंगल से बात हो चुकी है स्टेटस कांटेक्ट टीम पर इंपैक्ट बोलिंग क्वालिटी और आईकॉनिक मोमेंट्स तो चलिए अब सवाल का जवाब ढूंढते हैं|

1990 में टीम इंडिया की सक्सेस

जो 1990 की पूरी क्रिकेट जनरेशन में गूंजता रहा अगर सिर्फ आंकड़ों की बात करें तो Sachin सचिन थोड़ा आगे निकल जाते हैं उनकी कंसिस्टेंसी बेमिसाल थी करियर लंबा था और हर टीम के खिलाफ उनका परफॉर्मेंस बैलेंस था सचिन ने हर कंट्री के खिलाफ एवरेज 40 से ऊपर रखा जो लारा नहीं कर पाए| लेकिन जब बात आती है बल्लेबाजी की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचने की तो लारा बाजी मार लेते हैं|


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उनका प्रेशर में मैच जीतने वाला गेम और रिकॉर्ड तोड़ पारिया उन्हें एक अलग ही आर्टिस्ट बनाती है टीम पर इंपैक्ट के मामले में सचिन का पलड़ा बहुत भारी है,उन्होंने 1990 में इंडिया की सक्सेस में जो रोल प्ले किया वह बेमिसाल था अकेले दम पर उन्होंने टीम इंडिया को डिफेंसिव माईन्ड सेट से निकाल करके अग्रेसिव अप्रोच तक मोड़ दिया|

 

अभिवाद सब क्रिकेट फैन्स को माननी पड़ेगी और इस बहस का कोई विजेता नही है इसकी खूबसूरती है Sachin तेंदुलकर एक ज्यादा कम्प्लीट प्लेयर थे|और उनकी कंसिस्टेंसी लंबी पारी और ऑलराउंड एक्सीलेंस उन्हें ग्रेटर बल्लेबाज बनती है| उन्होंने अपना टैलेंट सिर्फ टैलेंट नहीं रहने दिया मेहनत और डेडीकेशन से उसे मैक्सिमम लेवल तक पहुंचाया|


ब्रेन लारा ज्यादा नेचुरली गिफ्टेड बल्लेबाज थे उनका पीक परफोर्मेंस ऐसा होता था जो क्रिकेट के इतिहास में कुछ ही लोग कर पाए हैं| वो एक आर्टिस्ट थे जो लॉजिक और रीजन को मात देकर मास्टरपीस क्रिएट करते थे और जो खिलाड़ी इन दोनों के सामने खेले उन्होंने कहा भी लारा ज्यादा नेचुरल थे| लेकिन सचिन वो थे जो हर एक दिन हर एक मैच के लिए पूरी तरह से तैयार रहते थे|


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लारा बनाम सचिन वाली बहस का मकसद कभी यह नहीं था कि किसी एक को विनर घोषित किया जाए इसका असली मजा तो इस बहस को सेलिब्रेट करने में है|इन दोनों दिग्गजों ने 1990 के पूरे दशक में एक दूसरे को ग्रेटनेस की तरफ पुश किया और बदले में हम फैन्स को मिली ऐसी बैटिंग की गोल्डन जनरेशन जो शायद कभी दोबारा ना देखने को मिले|


Sachin ने हमें सिखाया की लगातार मेहनत और प्रोफेसन्लिज्म से इंसान असाधारण उचाइयों तक पहुंच सकता है|और लारा ने दिखाया की जब नेचुरल टेलेंट खिल करके खेलता हैं तो एक ऐसा मैजिक मूमेंट बन सकता है जो हमेशा के लिए याद रखे जाते हैं|


तो अब अगली बार जब कोई बोले, लारा अच्छा था या सचिन तो बस मुस्कुराकर के कहना वो दौर अच्छा था|क्योकि दोनों थे और यह बहस चलती रहनी चाहिए और यही इसकी असली जान है| इस कंट्रोवर्शियल रहा है जहां पर कोई कंक्लुजन नहीं निकला है| बल्कि दोनों लोग बराबर रहे हैं| 

 

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