![]() |
| credit @Cricket Addictor |
3 मई 1995 ये वह दिन है जब कई कैरेबियन दिल एक साथ टूट गए थे जमैका के सबीना पार्क का स्कोर बोर्ड उस दिन बर्बादी की दास्तान सुना रहा था| ऑस्ट्रेलिया 531 वेस्टइंडीज 265 और 213
स्टीव बॉ ने खड़े होकर 200 रन ठोके और उनके जुड़वा भाई मार्क बॉ ने 126 रन जोड़ दिए दोनों ने मिलकर 231 रन की पार्टनरशिप की|
जो 30000 जोशीली जमैका फैंस को बिल्कुल चुप कराके वेस्टइंडीज के तेज के बाद वेस्टर्न बेंजामिन मैदान पर ही रो पड़े, फ्रैंक वोरेल ट्रॉफी जो 1977 से कभी वेस्टइंडीज के हाथों से निकला ही नहीं था| उस दिन पहली बार छीन गई 15 साल की जबरदस्त बादशाहत के बाद वेस्टइंडीज का साम्राज्य आखिरकार ढह गया|
किसकी बादशाहत ज्यादा भारी थी?
लेकिन यह सिर्फ एक आम हार नहीं थी असल में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को क्रिकेट का ताज़ सौंपने वाला पल था एक सुनहरी एराकांत और एक नई क्रिकेट साम्राज्य की शुरुआत, वेस्टइंडीज की सुनहरी टीम का सफर वही थम गया था और ऑस्ट्रेलिया की बेमिसाल हुकूमत की शुरुआत यह लम्हा क्रिकेट के इतिहास का वह मॉड था जहां दो महान युगों की कहानी एक दूसरे से टकराई|
और यही से उठता है वह सवाल जो आज तक क्रिकेट प्रेमियों को उलझाए हुए है किसकी बादशाहत ज्यादा भारी थी क्या वह खतरनाक वेस्टइंडीज टीम जिसने 1970-80 के दशक में दुनिया को झुकने पर मजबूर कर दिया था| या फिर ऑस्ट्रेलिया की मशीन जैसी टीम जिसने 1990 के अंत और 2000 में टिकट को अपने हिसाब से चलाया|
![]() |
| credit @Naidunia |
वेस्टइंडीज की गोल्डन एरा कोई रातों-रात पैदा नहीं हुई थी यह उस मजबूत नीव पर खड़ी हुई जो खिलाड़ियों ने तैयार की जिन्होंने क्रिकेट के सोचने के तरीके को ही बदल दिया| शुरुआत हुई उस करिश्माई लीडर क्लईबेड की कप्तानी से वह लोग सिर्फ क्रिकेट नहीं खेल रहे थे बल्कि उसके डीएनए को दोबारा गढ़ रहे थे और यह सिर्फ एथलीट टैलेंट की बात नहीं थी|
1975 का वर्ल्ड कप मैच
यह तो पहचान और आजादी जताने का तरीका बन गया था वह दौर था जब कैरिबिआई देश उपनिवेशवाद की जंजीर तोड़कर खड़े हो रहे थे| और क्रिकेट उनके लिए सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि खुद को साबित करने का प्लेटफॉर्म बन चुका था|वेस्टइंडीज की यह ट्रांसपोर्टेशन असली माईनो में 1975 के वर्ल्ड कप से शुरू हुई|
लोड्स में मिली वह जीत सिर्फ एक मैच नहीं थी वह एक ऐलान था क्लाइंब लोयर्ड ने 82 बॉल में सेंचुरि मारी कीथ बॉयस ने चार विकेट झटके और इंग्लैंड को 17 रन से हराकर एक नया क्रिकेट साम्राज्य पैदा किया, 1989 में जब उन्होंने अपना वर्ल्ड कप टाइटल डिफेंड किया तो वेब रिजार्ड ने नाबाद 138 रन ठोक कर साबित कर दिया कि अब क्रिकेट का रुख बदल चुका है|
अब बात करते हैं उस दूर की आंकड़ों की जो बताते हैं कि वेस्टइंडीज की बादशाह सिर्फ कहानियां में नहीं बल्कि तथ्यों और आंकड़ों में भी दर्ज है| 1980 से 1989 के बीच वेस्टइंडीज ने 82 टेस्ट मैच खेले और उनमें से 43 जीत है,इस दशक में किसी भी टीम से ज्यादा जीत का प्रतिशत 52.43 था जो आज के हिसाब से शायद नॉर्मल लगेगा|
![]() |
| credit @Hindustan Times |
लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि पूरे दशक में सिर्फ आठ टेस्ट हारे और कोई और टीम इतनी कम बार नहीं हारी थी| और अब आता है सबसे पावरफुल रिकॉर्ड जो है 29 लगातार टेस्ट सीरीज हारे बिना जून 1980 से लेकर 1995 तक पूरे 15साल एक भी टेस्ट सीरीज नहीं हारी, यह रिकॉर्ड आज तक कोई तोड़ नहीं पाया और उनका पिक टाइम आया फरवरी 1981 से दिसंबर 1989 तक|
फरवरी 1981 से दिसंबर 1989 तक
उन्होंने 69 टेस्ट मैच खेले 40 जीते सिर्फ 7 हारे अब कोई यह ना कहे कि वह सिर्फ अपने घर में शेर थे उनका आतंक दूसरे देशों में भी था 1980 के दशक में वेस्टइंडीज ने बाहर जाकर 52 टेस्ट मैच खेले जिसमे से 25 जीत ली और वह एकमात्र ऐसी टीम थी जिन्होंने उस दशक में 10 से ज्यादा विदेशी टेस्ट मैच जीते, इंग्लैंड के खिलाफ तो उनका अलग ही कहर था|
पूरा 1980 का दशक बीत गए इंग्लैंड एक भी टेस्ट सीरीज नहीं जीत पाए 24 टेस्ट खेले 17 जीते और 7 ड्रो रहे इतना ही नही, उन्होंने इंग्लैंड को 5-0 से क्लीन स्वीप भी किया जैसे उन्होंने मजाक में ब्लैक वॉश कहना शुरू कर दिया|अब बात करते हैं उस चीज की जिसने वेस्टइंडीज को वाकई में डरावना बना दिया था| उनका खौफनाक फ़ास्ट बॉलिंग अटैक जिसे दुनिया जानती है फेयर सम फॉर सोम के नाम से|
![]() |
| credit @Cricket Hall of fame |
एंडी रोबोट, माइकल होल्डिंग, ज्वेल गवर्नर, और कॉलीन क्राफ्ट इन चारों ने पहली बार एक साथ 1989 80 की ऑस्ट्रेलिया टूर में टेस्ट मैच खेला और वहीं से शुरू हुई एक दहशत की दास्तान जो पुरे दशक तक क्रिकेट की दुनिया पर छाई रही|और इन चारो के बाद जो आया वह शायद इन सबसे ऊपर निकला मेंलकम मार्शल|
![]() |
| credit @Stat Sensel |
क्रिकेट इतिहास के सबसे घातक गेंदबाजों में से एक पांचवें नंबर पर थे सर विवियन रिचर्ड्स जिनका 1976 से 1983 के बीच औसत 66.51 था मतलब लगातार बॉलर्स की वाट लगाना और 1976 की बात तो कुछ और ही थी सिर्फ 11 टेस्ट में 1710 रन बना दिए और औसत 90.00 और 7 सेंचुरी ये रिकॉर्ड पूरे 30 साल तक अटूट रहा वह सिर्फ रन मशीन नही थे, वो तो बैटिंग के अंदाज को ही बदल कर रख दिए|
ऑस्ट्रेलियाई चक्रवात
वन दे क्रिकेट इतिहास में उन्होंने वही धासु अंदाज़ इतना ही नही क्रिकेट इतिहास में सिर्फ 6 बल्लेबाज ऐसे हैं जिन्होंने 25000 से ज्यादा वनडे रन औसत 45 से उपर और स्ट्राइक रेट 90 से ज्यादा के साथ बनाएं वेब रिचर्ड्स उन पहले लोगों में से थे जिन्होंने यह कारनामा किया|ऑस्ट्रेलिया के दबदबे की शुरुआत हुई 1995 में|
कैरेबियाई जीत से जब मार्क टेलर की टीम ने आखिरकार वेस्टइंडीज की सालों से चली आ रही बादशाहत को तोड़ दिया| लेकिन असली गोल्डन ऐरा शुरू हुआ 1990 के आखिरी हिस्से में स्टीवक की कप्तानी में और फिर अपनी छोटी पर पहुचाया रिक्की पोंटिंग के दौर में, अक्टूबर 1999 से नवंबर 2007 के बीच ऑस्ट्रेलिया ने 93 टेस्ट मैच खेले और उनमें से 72 जीते|
![]() |
| credit @Strikingly |
और सिर्फ जीत ही नही उन 93 में से सिर्फ 11 डरो हुए मतलब यह टीम हर बार रिजल्ट के लिए खेलती थी 28 टेस्ट सीरीज में से 24 जीत सिर्फ 2 हारी और दो डरो रही, ऐसा रिकॉर्ड किसी दूसरी टीम के पास नहीं है स्टीव वो जिन्होंने 1999 से 2004 तक कप्तानी की उनकी टेस्ट जीत प्रतिशत 72% इतनी ज्यादा किसी और कप्तान की नही रही जैसे लम्बे समय तक कप्तानी की हो उनके अंडर कंगारू ने 57 टेस्ट में से 41 जीत और 16 टेस्ट लगातार जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी उनके दौर में बना जिसमे से 15 मैच वो ने खुद लीड की उसके बाद रिक्की पोंटिंग ने कमान संभाली|
और उसी स्टैंडर्ड को बरक़रार रक्खा 77 टेस्ट में से 48 जीते 62 परसेंट रनरेट के साथ मतलब कप्तानी बदली पर जितने की आदत नहीं ये तो टेस्ट की बात है,वनडे में तो और भी ज्यादा डोमिनेशन दिखाई और ऑस्ट्रेलिया ने कर दिखाया वह कारनामा आज तक कोई टीम नहीं कर पाई 1999 2003 और 2007 3 वर्ल्ड कप लगातार जितना|
बड़े मैचो के बड़े खिलाड़ी
इस हैट्रिक के पीछे छिपा था एक 34 मैचो का अपराजिया वर्ल्ड कप रिकॉर्ड तो 1999 से 2011 तक चला लेकिन बड़े मैचो के बड़े खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया की पहचान थे,जैसे रिक्की पोंटिंग ने 2003 वर्ल्ड कप फाइनल में नाबाद 140 रन ठोके और डीमन मार्टिन ने साथ में 88 रन नोटआउट मारे और तीसरे विकेट के लिए 234 रन की रिकॉर्ड पार्टनरशिप बना डाली|
![]() |
| credit @Amar Ujala |
ऑस्ट्रेलिया ने 359 रन बना दिए और इंडिया को सिर्फ 234 पर ऑलआउट कर दिया 125 रन से जीत वर्ल्ड कप का एक तरफा फाइनल तो वाही 2007 फाईनल में और भी तबाही मचाई एडाम गिलक्रिस्ट ने 104 गेंदों पर 149 रन ठोक दिया और श्रीलंका की सारी उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया|ऑस्ट्रेलिया ने 269 का टारगेट सिर्फ 18 ओवर बाकी रहते ही हासिल कर लिया|
1999 से 2011 के बीच ऑस्ट्रेलिया ने 25 वर्ल्ड कप मैच लगातार जीती तीनों वर्ल्ड कप के अलावा यह स्ट्रीक 2011 में पाकिस्तान के हाथों टूटी और सिर्फ 2007 की ही बात करें तो उन्होंने 34 वनडे खेले जिनमे से 24 मैच जीते मतलब 75% सफलता दर,जैसे वेस्टइंडीज के लिए उनके तेज़ गेंदबाजो ने उनकी बादशाहत की नीव रक्खी थी, वैसे ही ऑस्ट्रेलिया के लिए एक पेसर और एक स्पिनर ने उनका विजय रथ थामे रक्खा|
ग्लेन मेग्रा अपने जमाने में सबसे किफायती और भरोसेमंद फास्ट बॉलर थे उनकी लाइन लेंथ इतनी सटीक होती थी कि बल्लेबाजों के लिए उन्हें खेलना ही किसी सजा से कम नहीं था| खासकर ऑस्ट्रेलिया के पिचों पर अब आते हैं शेन वार्न जिन्होंने लेग स्पिन की पूरी परिभाषा बदल दी और 2007 तक वो थे, दुनिया के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले बॉलर|
वार्न और मैक्ग्राथ
इन दोनों ने मिलकर खेले 104 टेस्ट मैच इसमेसे ऑस्ट्रेलिया ने 71 जीते यानि के 68% मैच जीते जब ये दोनों दोनों साथ खेले और दौर इन दोनों की जोड़ी ने मिलकर हर टेस्ट में औसतन 10.6 विकेट चटकाए जबकि बाकी बॉलर मिलकर 9.3 विकेट लिए मतलब यह दोनों अकेले विरोधी टीमों पर भारी पड़ जाते थे|
![]() |
| credit @SportsAdda |
मेग्रा की बाउंस और सटीकता एक ओर से हमला करती थी तो वार्न की माया और घुमती गेंदे दूसरे एंड से घुमा देती थी| इनका ताल में इतना जबरदस्त था कि सामने वाली टीम शुरू से लेकर आखिरी बल्लेबाज तक दबाव में रहती थी, तब तक सिर्फ गेंदबाजी नहीं ऑस्ट्रेलिया की बैटिंग भी उतने ही घातक थी जहां पारंपरिक तकनीक और नई सोच का जबरदस्त कांबिनेशन था|
एडम ने तो विकेट कीपर बैटर की भाषा ही बदल दी उनका स्ट्राइक रेट उस ज़माने में ऐसा था की लोअर आर्डर बैटिंग को भी हथियार बना दिया|सिर्फ वर्ल्ड कप फाईनल की बात करे तो 1999 में 54 रन 2003 में 57 रन और 2007 में 149 रन टॉप आर्डर में हेडन और लेगर की जोड़ी क्रिकेट इतिहास की सबसे सफल ओपनिंग पार्टनरशिप में से एक थी|
मिडिल ऑर्डर में रिक्की पोंटिंग, स्टीव मार्कफो और बाद में माइकल क्लार्क और माइक हसी जैसे खिलाड़ी मतलब टीम इतनी गहरी थी की टॉप ऑर्डर अगर फेल भी हो जाए तो मिडिल ऑर्डर और लोअर आर्डर में भी मैच जीताने वाले बैठे होते थे|रिक्की पोंटिंग की बात करे तो वौइस् ऑस्ट्रेलियाई अग्रेसिव एप्रोच का चेहरा थे|
ऑस्ट्रेलिया को महान किसने बनाया?
अपनी कप्तानी में भी उन्होंने झंडे गाड़े 77 टेस्ट में 48 जीते 230 वनडे में 165 जीत मतलब कप्तान के तौर पर भी मशीन थे,अब जो चीज इस पूरी कामयाबी के पीछे सबसे बड़ी वजह बनी वह थी ऑस्ट्रेलिया का प्रोफेशनल अप्रोच और सिस्टम की ताकत जैसे क्रिकेट इतिहासकार टिम्म भाग्मोर ने भी कहा था ऑस्ट्रेलिया बाकी देशों से बेहतर इसलिए था|
![]() |
| credit @News18 |
क्योंकि वह अक्सर अपनी बेस्ट टीम सेलेक्ट करने में कोई गलती नहीं करते थे जब बाकी देश में कभी पॉलिटिक्स कभी अंदरूनी मन मोटाव, टीम सिलेक्शन को प्रभावित करती थी,वाही ऑस्ट्रेलिया ने सिस्टम को मेंन रोल दिया उनकी डोमेस्टिक का स्ट्रक्चर जिसकी नीव रक्खी सेफार्ड शील्ड और बाद में प्यूरा कप ने वो इतना मजबूत था कि सिर्फ सबसे बेस्ट टैलेंट थी|
नेशनल टीम तक पहुंच पाता था स्टेट के बीच की टक्कर इतनी हाई लेवल की होती थी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स अपने आप ही बन जाता था इस माहोल ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जहां परफॉर्मेंस सब कुछ था नाम सिफारिश थे बैकग्राउंड नहीं| अगर हम टेस्ट क्रिकेट के परफॉर्मेंस की बात करें तो दोनों ही टीमों ने अपने-अपने दौर में डोमिनेंस दिखाया|
दोनों टीमो के,आंकड़े क्या कहते हैं?
लेकिन उनकी सुपिरियती का तरीका अलग था वेस्टइंडीज का गोल्डन अराउंड स्पेसिअल 1980 का कंसिस्टेंसी दूसरा नाम था उन्होंने लगातार 29 टेस्ट सीरीज बिना हारे निकाले जो आज तक कोई टीम नही कर सकी यही स्ट्रीक इस बात की प्रूफ है कि वेस्टइंडीज सिर्फ जीती नहीं रही थी वह हार टाल रही थी किसी भी कंडीशन में|
दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया ने अपने गोल्डन टाईम में 1995 से लेकर के 2007 तक स्ट्रेट होता है उस दौरान एक किस्म की सुपरमेसी दिखाई अक्टूबर 1999 से नवंबर 2007 के बीच उन्होंने 93 टेस्ट खेले जिनमें से 72 मैच जीते और सिर्फ 11 हारी यानी 77.4 की रन रेट वेस्ट इंडीज ने अपने पिक 1980 में 82 टेस्ट मैच खेले जिन्मेसे 43 जीते और 8 हारे|
![]() |
| credit @The Business Standard |
लेकिन बहुत कम ही डिफीट्स हुए तो यहां पर एक क्लियर कंट्रास्ट है कि ऑस्ट्रेलिया यानि जीत ज्यादा एग्रेसिव स्टाइल मैचेस खत्म करना पसंद वेस्टइंडीज यानी कम हार डोमिनेशन विद डिफेंस लॉन्ग अनबीटन रस लिमिटेड ओवर क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया का नाम लेना उतना ही काफी है क्योकि अनपरेलल डोमिनेंस का एक मास्टर क्लास एग्जांपल है उनका वर्ल्ड का परफॉर्मेंस|
ऑस्ट्रेलिया ने लगातार तीन वर्ल्ड कप जीते और उसके बाद उन्होंने 34 लगातार ODI मैच नही अब यह तो किसी ड्रीम जैसा लगता है, और कोई टीम ऐसी कंसिस्टेंसी के आसपास आ ही नहीं पाए वेस्टइंडीज ने जरूर 1975 और 1989 के पहले तो वर्ल्ड कप जीते लेकिन उनका ODI डोमिनेंस 1980 में उतना स्टेनडेबल नहीं रहा जितना उनका टेस्ट अग्रेसनेस था|
और ऑस्ट्रेलिया का ODI विन परसेंटेज उनके गोल्डन समय में 70% से उपर रहा अक्रॉस ओल्ड कंडीशन और अपोनेंस उनकी डपेबिलिटी सबसे खाश रही,चाहे स्लो पिच हो या फिर फ़ास्ट या बौंसी ट्रेकस इन्होने हर फोर्मेट में अपने गेम को मोल्ड किया और एक्सीलेंस मेंटेन किया|
साम्राज्य का पतन

credit @The SportsRush

हर साम्राज्य की तरह वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया की ये महान टीमे भी अंततः अपनी स्वर्णिम युग से बाहर आ गई|पर तरीका अलग-अलग था वेस्टइंडीज का पतन धीरे-धीरे 1990 के दशक की शुरुआत से गिरावट शुरू हुई और 2000 के दशक में और तेज हो गई, इस गिरावट के पीछे थे कई बड़े कारण आर्थिक समस्याए|
कैरबियान में दुसरे खेलों का उभार क्रिकेट बोर्ड की प्रशासनिक गड़बड़ियां सबने मिलकर वंश इन्विंसिबल टीम को झुका दिया जिसने एक समय हर मैदान पर राज किया था वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया का पतन अचानक हुआ एक झटके की तरह 2006-7 की एसएस सीरीज के बाद जैसे ही क्लेन मेग्रा शेन वार्न क्रॉस और लंगर और बाद में रिक्की पोंटिंग जैसे खिलाड़ी रिटायर हुए टीम की रीड टूट गई|
हालाकि उसके बाद वेस्टइंडीज कभी भी वो रुतबा हासिल नहीं कर पाए लेकिन ऑस्ट्रेलिया 2015 वर्ल्ड कप 2023 वर्ल्ड कप T20 वर्ल्ड कप और टेस्ट चैंपियनशिप जीत चुकी है|और वापस उसी दौर में जा रही है खास करके टेस्ट फोर्मेट में, हालांकि वेस्टइंडीज ने हाल ही में अपने बोलिंग में सुधार किया है| वह भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही लेकिन उनकी बैटिंग अभी भी अपनी वापसी का इंतजार कर रही है|










